क्यों देखने जाएं?
कमाल के डायलॉग्स: फाइनली ये ज़ाहिर हो गया कि ये फ़िल्म हाजी मस्तान की ही कहानी है। कुछ कमियों के साथ ये फ़िल्म देखने लायक है। ये फ़िल्म अगर लोगों को पसंद आ रही है तो उसकी वजह अजय देवगन या इमरान हाशमी नहीं हैं ना ही कंगना रणावत और प्राची देसाई। इस फ़िल्म का असल हीरो अगर कोई है तो वो है डायलॉग राइटर रजत अरोरा। फ़िल्म के पंचेज़ हैं जो हॉल में सीटियां और तालियां बजवाते हैं। पहले हाफ में तो रजत ने कमाल के डायलॉग्स दिए हैं।
रसभरे गाने: फिल्म के गाने पहले से हिट थे। जब थियेटर में अजय देवगन और कंगणा रणावत के बीच फ़िल्माया गाना “तुम जो आए” और हिमेश-प्राची पर फ़िल्माया “पी लूं” बजता है तो लगता है कि पैसा वसूल हो गया।
गैंगस्टर स्टाइल: इस मामले में ये फ़िल्म थोड़ी फिकी रही। कम्पनी और सत्या की तरह ये फ़िल्म उतनी स्टाइलिश नहीं है। कैरेक्टर्स में बहुत ज़्यादा दम नहीं दिखता ना ही एक अंडरवर्ल्ड विषय पर बनी फ़िल्म की तरह इसमे वायलेंस है। लेकिन इसके पंचेज़ और प्रेजेंटेशन हर कैरेक्टर में जान डाल देते हैं। इसी का असर है कि पहले हाफ तक तो आप स्क्रीन से नज़र नहीं हटा सकेंगे। सुझाव है कि आप अपना मोबाइल ऑफ कर के फ़िल्म देखें नहीं तो कई लोगों को तो आप नाराज़ कर देंगे।
क्यों नहीं देखें?
कहानी मार जाए: फ़िल्म की कहानी में ज़रा सा भी दम नहीं दिखता। पुरानी गैंगस्टर की कहानी है। 70 से 90 के दशक का फील है। ज़रा भी स्टाइलिश नहीं है। कहानी में ये बात पचती नहीं कि एक गैंगस्टर गन का इस्तेमाल नहीं करता। वो शराब का बिजनेस नहीं करता। जिस गैंगस्टर ने हिंदुस्तान में स्मगलिंग की शुरुआत की वो ड्रग्स की तस्करी से परहेज़ करता है।
मेरी तरफ से इस फ़िल्म को 4 स्टार
****
कमाल के डायलॉग्स: फाइनली ये ज़ाहिर हो गया कि ये फ़िल्म हाजी मस्तान की ही कहानी है। कुछ कमियों के साथ ये फ़िल्म देखने लायक है। ये फ़िल्म अगर लोगों को पसंद आ रही है तो उसकी वजह अजय देवगन या इमरान हाशमी नहीं हैं ना ही कंगना रणावत और प्राची देसाई। इस फ़िल्म का असल हीरो अगर कोई है तो वो है डायलॉग राइटर रजत अरोरा। फ़िल्म के पंचेज़ हैं जो हॉल में सीटियां और तालियां बजवाते हैं। पहले हाफ में तो रजत ने कमाल के डायलॉग्स दिए हैं।
रसभरे गाने: फिल्म के गाने पहले से हिट थे। जब थियेटर में अजय देवगन और कंगणा रणावत के बीच फ़िल्माया गाना “तुम जो आए” और हिमेश-प्राची पर फ़िल्माया “पी लूं” बजता है तो लगता है कि पैसा वसूल हो गया।
गैंगस्टर स्टाइल: इस मामले में ये फ़िल्म थोड़ी फिकी रही। कम्पनी और सत्या की तरह ये फ़िल्म उतनी स्टाइलिश नहीं है। कैरेक्टर्स में बहुत ज़्यादा दम नहीं दिखता ना ही एक अंडरवर्ल्ड विषय पर बनी फ़िल्म की तरह इसमे वायलेंस है। लेकिन इसके पंचेज़ और प्रेजेंटेशन हर कैरेक्टर में जान डाल देते हैं। इसी का असर है कि पहले हाफ तक तो आप स्क्रीन से नज़र नहीं हटा सकेंगे। सुझाव है कि आप अपना मोबाइल ऑफ कर के फ़िल्म देखें नहीं तो कई लोगों को तो आप नाराज़ कर देंगे।
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