P R E D A T O R S (No Value of Money)

अजीब बात है, इस फिल्म का स्वागत खाली पड़े थियेटर ने किया। शायद पिछली दो Predator की विफलता ने ऐसा किया हो लेकिन ऐसा लगता नहीं कि आगे भी इस फ़िल्म को दर्शक नसीब होनेवाले हैं क्योंकि नई फ़िल्म में एक ‘s’ के अलावा कुछ नया नहीं लगता। Vacancy के डायरेक्टर निमरॉड एंटल ने 2010 की Predator को Predators नाम दिया...


क्यों देखने जाए?

अगर आपने इससे पहले के Predator Versions नहीं देखे है, तो ही इस फिल्म को देखने जाएं।

क्यों नहीं देखें?

इसके लिए मेरे पास तमाम वजहे हैं

पुरानी कहानी : फ़िल्म की शुरुआत होती है कलाकारों के हवा में गिरते हुए। वे ऑटोमेटिक पैराशूट से एक जंगल में गिरते हैं। अगर आपने 1987 की अर्नॉल्ड स्वाजनेगर की पहली Predator देखी होगी तो आप दुबारा वही 23 साल पुरानी कहानी देखने जा रहे हैं। Alex Litvak और Michael Finch ने हॉलीवुड फ़िल्म में पहली बार कहानी लिखी है और उन्होने बता दिया है कि वे नौसिखिया हैं। जिन एलयिन्स को Predator के तौर पर दुनिया 23 सालों से देखती आ रही है उन Predators को दर्शकों से करीब-करीब आधी फ़िल्म तक छुपाकर रखा गया। ऐसी ज़रूरत क्यों पड़ी ये तो डायरेक्टर Nimrod Antal ही बता सकते हैं। कहानी इसलिए भी बेदम लगती है क्योंकि Laurence Fishburne के कैरेक्टर को बेवजह घुसाया गया है और शुरूआत से ही कहानी चलते-चलते थम जाती है फिर चलती है फिर थम जाती है। कुल मिलाकर बोर करती है।
पुराना प्लॉट : फ़िल्म में कलाकारों को एलियन शिकारियों के साथ शिकार-शिकार खेलना होता है और उसके लिए उन्हे किसी दूसरे ग्रह में ले जाया गया होता है लेकिन फ़िल्म के प्लॉट में कुछ भी ऐसा नहीं है जो दूसरे ग्रह जैसा दिखता हो। जिस जंगल में फ़िल्म चलती है वो वैसा ही लगता है जैसा 1987 की Predator में था, अमेरिका का जंगल। कुछ अजीब जानवरों को दिखाया गया है लेकिन उनके स्क्रीन पर आते ही दर्शक चिल्लाने लगते हैं “ये तो Avtar से कॉपी किया है”। इसके अलावा पुराने शिकारी Predator और नए Predators में कुछ भी अलग नहीं है। मैंने ये सोचा था कि इस बार के Predators ज़्यादा तकनीक और नए हथियारों से लैस होंगे, कहीं ज़्यादा मज़बूत होंगे, कुछ नयापन होगा। लेकिन ऐसा नहीं था। ना ही कलाकारों के पास कोई नई टेक्नोलॉजी या नयापन था। सब कुछ पुराना-पुराना सा।
कमज़ोर कलाकार : जिन 9 लोगों को Predators के ख़िलाफ़ लड़ते हुए दिखाया गया है उनमें से किसी में भी दम नहीं दिखता। लीड रोल करनेवाले Adrian Brody के पास वो मसल्स नहीं हैं जो एक एक्शन हीरो में होने चाहिए जैसी बॉडी Arnold Schwarzenegger की है। और जिन दो ब्लैक एक्टर्स की अच्छी-खासी बॉडी थी उनके लिए फ़िल्म में कोई ख़ास रोल नहीं था। Predators की एंट्री के साथ ही Mahershalalhashbaz Ali का रोल ख़त्म हो जाता है और Laurence Fishburne अचानक से फ़िल्म के बीच में आते हैं और 10 मिनट के रोल के बाद ख़त्म। Laurence का कैरेक्टर फ़िल्म में क्यों आया समझ के बाहर है जब उसकी दमदार एंट्री होती है तो लगता है कि कहानी कुछ और रुख लेगी लेकिन 10 मिनट बाद ही कहानी वहीं पर वापस आ जाती है।
बकवास एक्शन : अब तक की Predator में एक्शन कमाल का रहा है लेकिन इस बार इसकी भयानक कमी रही। 9 इंसानों में से 7 मरते हैं और सिर्फ एक को छोड़कर बाकी या तो पर्दे के पीछे मर जाते हैं या विस्फोट में उड़ जाते हैं। ख़ून, गोलियां, लाशें, कीचड़, ये सब तो दिखते हैं लेकिन एक्शन के नाम पर फिल्म में बेवकूफी झलकती है, एक जगह तो जिस तरह Louis Ozawa Changchien समुराई (तलवार) लेकर Predator से लड़ता है तो ऐसा लगता है कि खली से राजपाल यादव लड़ रहा हो। इसके अलावा फ़िल्म के क्लाइमेक्स में Adrian Brody आख़िरी Predator से लड़ता है और उसे मुक्के से मारता है। जो Predators ग्रेनेड के धमाके में नहीं मरते उनसे मुक्केबाज़ी। पूरा मज़ाक। कहने का मतलब कोई ऐसा एक्शन सीन नहीं है जिसकी वजह से आप अपनी सीट से कूद पड़ें या आंखे फाड़कर स्क्रीन देखें या फिर आंखें बंद कर लें।
पूरी फ़िल्म का निचोड़ यही है कि सस्ते से सस्ते टिकट पर भी इसे देखना फिजूल है
 
इस फ़िल्म को मेरी तरफ से 2 स्टार

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@madhawtiwari