जिस फिल्म का स्वागत लोग सिर्फ उसके सिगनेचर म्यूज़िक को सुनकर सीटियों से करें... (थ्रीज़ कम्पनी का बैनर, और उस पर सिगनेचर म्यूज़िक) तो आसानी से समझा जा सकता है कि एडवांस बुकिंग में ही पहले दिन के सारे शो बुक कैसे हो गए... जी हां फ़िल्म का प्रमोशन कैसे किसी फ़िल्म की बम्पर शुरुआत कराता है... वो इस फ़िल्म ने साबित कर दिया...
विस्फोटक और बड़ी ही मज़ेदार शुरुआत... अक्षय (तबरेज़ आलम ख़ान उर्फ तीस मार खां) की एंट्री से लेकर देखते ही देखते कैटरिना कैफ़ (अन्या) और अक्षय खन्ना (आतिश कपूर) की एंट्री... कैट के आइटेम डांस “शीला की जवानी” का हूटिंग और सीटियों से स्वागत होता है... फिर एक गाने में सलमान ख़ान का आना... ये सब कुछ मिलकर शुरुआत में दर्शकों को बांधे रखता है... आधी फ़िल्म तक तो वक़्त का पता ही नहीं चलता...
लेकिन अगली आधी फ़िल्म थोड़ी स्लो हो जाती है... लेकिन मज़े का दौर ख़त्म नहीं होता... फ़िल्म कहीं भी बोर नहीं करती... अक्षय कुमार स्क्रीन पर छाये रहते हैं और कैटरीना कैफ़ बीच-बीच में छौंक लगाती रहती हैं... फ़िल्म ख़त्म होती है तो ऑस्कर अवार्ड की सेरेमनी के बहाने पूरी फ़िल्म के क्रू को स्क्रीन पर आने का मौका मिलता है... कैमरा असिस्टेंट से लेकर स्पॉट ब्वॉय तक... फराह ख़ान का ये प्रयोग अच्छा लगा और ये हॉल से बाहर जाते दर्शकों को एक मिनट के लिए रोक देता है... हैप्पी एंडिंग गाना भी अच्छा लगता है...
इतनी सारी अच्छाई का बखान करने के बाद अब थोड़ी बुराई भी हो जाए... फिल्म की कहानी में ज़रा भी दम नहीं... ब्लफ मास्टर... ओए बंटी बंटी ओए... बंटी बबली... धूम... के बाद एक चोर पर बनी इस फ़िल्म में न तो चोर के पास कोई ढंग का रोचक प्लान है... न ही कोई अलग अदा... अक्षय कुमार का रोल उनके पुराने रोल जैसा ही लगता है... जो वे कॉमेडी फ़िल्मों में करते आए हैं... नई चीज़ थी जोहरी ब्रदर्स (रघु और राजीव) जो आपस में जुड़े हुए हैं और विलेन का किरदार निभाते हैं... इनका अच्छा प्रयोग हो सकता था... लेकिन नहीं हुआ...
फ़िल्म में जितने पंचिंग डॉलॉग्स हैं उन्हे प्रोमो में इतना इस्तेमाल किया जा चुका है कि उन पर थियेटर में हंसी नहीं आती... और इन सारे डॉयलॉग्स को फिल्म के पहले हाफ में ही झोंक दिया गया है... दूसरे हाफ के लिए इस तरह का कोई मसाला ही नहीं बचता... डॉयलॉग्स लिखने में कुंदर ब्रदर्स की ये कंजूसी फ़िल्म के स्पीडी स्टार्ट पर ब्रेक लगा सकती है...
संगीत के मामले में शीला की जवानी के बाद किसी गाने में वो दम नहीं दिखता जो दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच कर लाए... शीला की जवानी में फराह की कोरियोग्राफी का भी कमाल देखने को मिलता है लेकिन सलमान के साथ अक्षय का गाना... बेहद धीमा है और डांस में कोई नया पन नहीं है...
1966 में आई आफ़्टर द फॉक्स फ़िल्म की पूरी कहानी यही है... एक क्रिमिनल जो गांव वालों के साथ फ़िल्म बनाता है... न्यू यॉर्क टाइम्स ने उसे क्लटर ऑफ नॉनसेंस करार दिया था... फिल्म सुपर फ्लॉप रही... ऐसे में फराह और कुंदर ब्रदर्स ने एक बड़ा रिस्क लिया है... फ्लॉप कहानी को दमदार कलाकारों से भरकर दुबारा पर्दे पर उतारना... बहुत हिम्मत का काम है... फराह ने ये जोखिम लिया है... और सितारों के गेस्ट अपियरेंस से पर्दे को भर दिया है... लेकिन फराह ने सिर्फ यही जोखिम नहीं लिया है इससे पहले फराह ने दो फिल्में बनाई हैं “मैं हूं ना” और “ओम शांति ओम”। दोनों फिल्मों में शाहरूख ख़ान थे और फिल्में हिट थीं, लेकिन इस बार फराह ने डबल अक्षय का जोखिम लिया है... अदाकारी में तो दोनों ने निराश नहीं किया... लेकिन असल मसला है फ़िल्म जाती कहां तक है...
फराह की पुरानी फ़िल्मों की तरह इस फ़िल्म में भी कलाकारों के ऊपर मसखरी है... जैसे ओम शांति ओम में दिलीप कुमार पर था... तीस मार खां में आमिर ख़ान, मनोज बाजपेयी, डैन डेनज़ोंग्पा के नाम का इस्तेमाल किया गया है... और ओम शांति ओम की तरह इस फ़िल्म में भी एक फ़िल्म स्टार के लिए कपूर टाइटल का इस्तेमाल किया गया है...
कुल मिलाकर अगर आप ये फ़िल्म देखने जा रहे हैं तो दिमाग़ घर पर रख के आइए... बिना दिमाग़ लगाए, बिना कोई लॉजिक तलाशे फ़िल्म देखिए... मज़ा आएगा...
3 Stars, Decent Watch, Full Entertainment, Illogical, Paisa Vasool
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