बॉडीगार्ड, रेडी, दबंग और दबंग-2 के बाद अगर ये फ़िल्म सलमान की तुलना में खड़ी की जाएगी तो सलमान तो आपको और अच्छे लगेंगे, लेकिन पूरी तरह से फ़िल्म के मामले में जय हो! निराश करती है। स्क्रीनप्ले इस तरह से बिखरा हुआ है कि पता ही नहीं चल पाता कि कहानी कहां से शुरू हुई और किस रास्ते से आगे बढ़ रही है। कई जगहों पर किरदारों से भी नाइंसाफ़ी की गई है, अधिकतर किरदारों को फ़िल्म में ख़ुद को दिखाने का और कहानी में अपनी ज़रुरत को साबित करने का मौक़ा ही नहीं मिला है।
जय हो दक्षिण की 2006 की फ़िल्म स्तालिन की रिमेक है जो ख़ुद हॉलीवुड की पे इट फॉरवर्ड से प्रेरित थी। लेकिन जिस तरह से डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले के मामले में स्तालिन कसी हुई थी, यहां उसकी कमी देखने को मिलती है। अलबत्ता दिलीप शुक्ला ने कहानी लिखने में जो कंजूसी की उसे उन्होंने सलमान ख़ान के संवादों को लिखने और कुछ कॉमेडी सीन्स को लिखने में पूरा कर दिया है।
फ़िल्म की कहानी उस आर्मी अफ़सर की है जो अपने सीनियरों से दुर्व्यवहार करने पर निकाल दिया जाता है और वो आम आदमी की सेवा करने निकल पड़ता है। उसका फॉर्मूला है पहले लोगों को मदद करो और फिर लोगों को दूसरों की मदद करने के लिए तैयार करो। इसी थीम के आस-पास कहानी घूमती है जिसमें सलमान की टक्कर गृहमंत्री डैनी से होती है। शुरुआत में कहानी पकड़ नहीं बना पाती लगता है कि सीन्स को सिर्फ एक दूसरे सो जोड़ दिया गया है, जबकि आख़िर के आधे घंटे में फ़िल्म आपको सीट से हिलने नहीं देती।
पूरी फ़िल्म सलमान ख़ान के किरदार के इर्द गिर्द घूमती है और बाकियों के लिए काफ़ी कुछ करने के लिए नहीं बचता, जेनेलिया डिसूजा किस तरह से मर जाती हैं पता ही नहीं चलता, जबकि तब्बू के किरदार को और दमदार बनाया जा सकता था। डैजी सिंह अभिनय के मामले में ठीक हैं लेकिन एक हीरोइन का फुल पैकेज इनमें नहीं मिलता, ग्लैमर की कमी डैजी के अभिनय को भी दबा जाता है।
काफ़ी वक़्त के पर्दे पर लौटे डैनी दमदार रहे हैं और एक भ्रष्ट पुलिसवाले के रोल में आदित्य पंचोली ने अपनी छाप छोड़ी है। फ़िल्म के क्लाइमेक्स में सुनील शेट्टी की एंट्री कमाल की रही है और रोड छाप गुंडे के तौर पर संतोष शुक्ला ने बॉलीवुड में अपनी बड़ी शुरुआत की है।
सोहेल ख़ान बतौर डायरेक्टर बिखरे हुए नज़र आते हैं, जो कहानी को सीन्स में समेटने में ही व्यस्त नज़र आते हैं, जबकि वो चाहते तो कुछ किरदारों की छटनी कर के फ़िल्म को थोड़ा और तेज़ बना सकते थे। सोहेल जहां लव और इमोशनल सीन्स को फ़िल्माने में कमज़ोर नज़र आते हैं तो वहीं एक्शन सीन्स में उनकी पकड़ कमाल की है।
संगीत के मामले में फ़िल्म के गाने पहले से ही लोगों की ज़बान पर चढ़े हुए हैं। साजिद वाजिद, देवी श्री प्रसाद और अमल मलिक का म्यूज़िक बेहद आसानी से दिमाग़ पर चढ़ जाता है लेकिन ये लॉन्ग लास्टिंग नहीं है। ये फ़िल्म तक ही रहता है और जब आप हॉल से बाहर निकलते हैं, तो आपके हाव-भाव में सलमान ही सलमान छाये रहते हैं।
इतना तो तय है कि अब सलमान एक रुटीन रोल में फिट हो चुके हैं, और अगर फ़िल्म में करने को भी कुछ न हो, फ़िल्म न कहानी में फिट बैठती हो, न निर्देशन में फिर भी अगर सलमान वॉन्टेड, दबंग, रेडी और टाइगर जैसी रुटीन भूमिका निभाते हैं तो दर्शक इसे पसंद करते हैं।
फ़ैन्स के लिए ये फ़िल्म दमदार है और जो फ़ैन्स नहीं हैं उनके लिए इसमे कुछ ख़ास नहीं है।
2 Stars, One Time Watch, Action-Drama, Week Story and Screenplay, Week Direction
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