Lafangey Parindey (A Decent Watch Film)

लफंगे परिंदे के लिए शुक्रवार का पहला शो ही खाली-खाली रहा। ये बताता है कि नील नितिन मुकेश से लोगों को बहुत ज़्यादा अपेक्षा नहीं है लेकिन फिल्म यश चोपड़ा बैनर की है और प्रदीप सरकार ने इसका निर्देशन किया है लिहाज़ा उम्मीदें बढ़ जाती हैं। प्रदीप सरकार की ये तीसरी फिल्म है। परणीता और लागा चुनरी में दाग के बाद 70 और 80 के दशक की तरह की फिल्म बनाने की सरकार को कैसे सूझी समझ में नहीं आता। लफंगे परिंदे पूरी टपोरी फिल्म है और सरकार से ऐसी टपोरी फिल्म की ज़रा भी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। फिर भी इस फिल्म में सरकार की मेहनत झलकती है उन्होने पूरी कोशिश की है कि लफंगे परिंदे को मुंबईया टपोरी का लुक मिल जाए लेकिन नील नितिन मुकेश इस कैरेक्टर में बिल्कुल फिट नहीं बैठते। उनके मुंह से टपोरी भाषा स्टाइल सांड़ा, ऐड़ा, शानपट्टी, सटकेला जैसे शब्द बिल्कुल फिट नहीं बैठते हालांकि सरकार की बाकी दो फिल्मों की तरह ये भी महिला प्रधान फिल्म है जिसमें दीपिका पादुकोण पिंकी पालकर एक स्केट डांसर होती है और उसके सपने पूरे करने के लिए नंदन कामटेकर उर्फ नंदू (नील नितिन मुकेश) उसकी मदद करता है।

अगर आपने राजेश कुमार, मीना कुमारी और मुमताज़ की दुश्मन देखी हो तो कहानी कुछ ऐसी ही है। नंदू (नील नितिन मुकेश) एक बॉक्सर है जिसका कोई परिवार नहीं है वो उस्मान भाई के लिए फाइट करता है और पहले मार खाने और नाक से ख़ून गिराने के बाद एक शॉट में सामने वाले तो चित करदेता है इसलिए उसका नाम वन शॉट नंदू हो जाता है। दूसरी तरफ एक वाड़ी में रहनेवाली और मॉल में काम करनेवाली पिंकी पालकर (दीपिका पादुकोण) है जो एक स्केट डांसर भी है और उसके सपने काफी ऊंचे है। लेकिन नंदू की गाड़ी से अचानक उसका एक्सिडेंट हो जाता है और वो अंधी हो जाती है। यहां से शुरू होती है प्रेम कहानी। नंदू एक अंधी लड़की को देखना सीखाता है और उसके सपने पूरे करने के लिए उसे मंज़िल तक ले जाता है।
कुल मिलाकर कहानी पुरानी है लेकिन प्लॉट नया है बोले तो पुरानी बाटली में नई शराब। इंटरवल के बाद से नंदू और पिंकी की प्रेम कहानी शुरू होती है और इसमें भी अदाकारी के मामले में दीपिका, नील पर भारी पड़ती दिखती हैं। के के मेनन अन्ना के रोल में शुरूआत में आते हैं लेकिन अचानक ही फिल्म से उनका पत्ता साफ हो जाता है। पीयूष मिश्रा ने अच्छा रोल निभाया है लेकिन उनका उतना इस्तेमाल नहीं किया गया जितना होना चाहिए था। नंदू के दोस्तों के तौर पर सबने अच्छा काम किया है।
संगीत के डिपार्टमेंट में आर आनंद ने स्वानंद किरकिरे के गानों पर बढ़िया काम किया है। गानों की पिक्चराइजेशन मुंबई से बाहर नहीं जाती है। निर्देशक रियल पिक्चर ही दिखाना चाहते है और ये अच्छा प्रयास है। ठीक 90 के दशक की फ़िल्मों की तरह।

नील को स्ट्रीट फाइटर के चौर पर पेश किया जाता है लेकिन कुछ बॉक्सिंग सीक्वेंस के अलावा कहीं भी एक्शन सीन नहीं है। बॉक्सिंग सीन आपको अजय देवगन की जिगर की याद दिला देता है।

फिल्म के आखिर में नील और दीपिका का स्केट्स पर डांस कमाल का है। कमाल की कोरियोग्राफी और कमाल का डांस। जब ये डास ख़त्म होता है तो पर्दे पर तालियां तो बजती ही हैं हॉल में बैठे दर्शक भी तालियां बजाए बिना नहीं रह पाते।

मेरी राय
फ़िल्म अच्छी है। पैसा वसूल है। नील को देखने जाना है तो ना जाए लेकिन एक अच्छी मनोरंजक फ़िल्म देखने के लिए जा सकते है। प्रदीप सरकार आपको अपनी सीट से हिलने नहीं देंगे। कहानी, किरदार और फिल्म की रवानगी को उन्होने बांधकर रखा है।

3 Stars, Decent Watch, Go for It

1 comment:

  1. neil is fabulous bhai kya baat kar rahe ho...........actor jisne apne purane 2 film mein dhansu performance di hai suuse aapko kya narazgi hain..

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@madhawtiwari