घर से निकलकर हॉल तक जाने में एक फैंटेसी घूमती रही। भई सलमान ख़ान की फिल्म को देखने जा रहा था... थियेटर पहुंचकर पता चला कि उस दिन के सभी शो बुक थे... कोई सीट खाली नहीं थी... ये था पहला सलमानी प्रभाव... मेरी सीट पहले से बुक थी लिहाज़ा आंखों में हीरो की हीरोगिर्दी की तस्वीर लिए सिनेमा हॉल में दाखिल हो गया... फिल्म शुरू हुई तो लगा मानो 80 के दशक की कहानी शुरू हो गई.... सौतेले बाप के लिए बेटे का गुस्सा... उत्तर प्रदेश की जानी-मानी पहचान... दबंगई... फिल्म की शुरूआत से ही झलकने लगी... वैसे तब लगा कि फिल्म कुछ ख़ास नहीं होगी... लेकिन सलमान ख़ान की एंट्री के साथ ही... थिएटर की अगली कम पैसेवाली सीट और पिछली ज़्यादा पैसेवाली सीट का फ़र्क मिट गया... हर जगह से सीटी की आवाज़... ये एंट्री बिल्कुल दक्षिण भारतीय फिल्मों की तस्वीर थी... लेकिन इस तस्वीर में सलमान ख़ान थे... लिहाज़ा उनके फैन्स को फैंटेसी जैसा कुछ नहीं लग रहा था... आज के दौर में सलमान ख़ान ही ऐसे हीरो हैं जिन्होने हीरोगर्दी के अपने रवैए को बनाए रखने का ज़ोखिम उठा रखा है.... ख़ैर बाकी ख़ान्स की तरह उन्हे शायद इससे इसीलिए परहेज नहीं क्योंकि उनके चाहनेवाले उनके इसी अंदाज़ के मुरीद हैं....
जिस फिल्म की कहानी में कुछ ख़ास नहीं था... उसके डायलॉग्स और उसके एक्शन के कॉमेडी का रिफ्रेशमेंट किसी को सीट नहीं छोड़ने देता...
और जब गाने बजते हैं तो लोग अपनी कुर्सी से उछल पड़ते हैं...इस फ़िल्म के बारे में इससे ज़्यादा कुछ नहीं... क्योंकि शुरू से लेकर सलमान ही फिल्म में हैं... और उनके ऊपर कोई हावी नहीं हो पाता... वाकई सलमान की दबंग है ये...
पैसा वसूल फ़िल्म
जिस फिल्म की कहानी में कुछ ख़ास नहीं था... उसके डायलॉग्स और उसके एक्शन के कॉमेडी का रिफ्रेशमेंट किसी को सीट नहीं छोड़ने देता...
और जब गाने बजते हैं तो लोग अपनी कुर्सी से उछल पड़ते हैं...इस फ़िल्म के बारे में इससे ज़्यादा कुछ नहीं... क्योंकि शुरू से लेकर सलमान ही फिल्म में हैं... और उनके ऊपर कोई हावी नहीं हो पाता... वाकई सलमान की दबंग है ये...
पैसा वसूल फ़िल्म
3.5 Stars, Full Entertainment, Go for it
kya ye koi review tha ya fir self expirence
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